शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

नाचते रहो इंडिया


एक जमाना था जब एक मदारी कई बंदरों को एक साथ नचाता था। लोग बंदरों को नाचते हुए देखकर तालियां बजाते थे। लेकिन अब एक बंदर को कई मदारी मिलकर नचा रहे हैं। अब तालियां बजाने के बजाय सब नाच रहे हैं। और नाच कर थक जाने के बाद थोड़ा बहुत चिल्लाकर भूखे पेट सो जाते हैं। आज के दौर का ये बंदर देश की जनता है। और मदारी टीम अन्ना, बाबा रामदेव, कांग्रेस, बीजेपी, वाम दल, दक्षिण दल, उत्तर दल, वगैरह, वगैरह है।
  आजादी के 64 बरस बाद भी देश की तमाम सियासी पार्टियां रोटी, कपड़ा और मकान की लालच में नचा रही है। जो दल इससे थोड़ा ऊपर उठ गया वो जाति, धर्म और क्षेत्र के नाम पर नचा रहा है। तो कुछ पार्टियां दूसरी पार्टियां का डर दिखाकर लोगों को अपनी अंगुली पर नचा रही है। जब कुछ लोगों को लगा कि देश की जनता इन राजनीतिक दलों के धुन पर बोर हो चुकी है। तो उन्होंने भ्रष्टाचार, कालाधन और महंगाई सरीखे ऐसा राग छेड़ा कि कन्याकुमारी से काश्मीर तक लोग एक साथ अपने आप नाचने लगे। आखिर हम बंदर जो ठहरे। गांधीजी के बंदर तो गुंगे, बहरे और अंधे थे। लेकिन ये बंदर तो उससे भी कहीं आगे है। जो सिर्फ दूसरों के इशारों पर नाचना जानता है। और कुछ नहीं।  
 देश की सबसे पुरानी पार्टी सबसे बड़ा खिलाड़ी है। वो बंदरों के मिजाज को परखने में खुद को माहिर समझती है। कांग्रेस समय-समय पर नया धुन छेड़ती रहती है। ताकि देश के बंदरों को बोरियत महसूस न हो। अब वो  गरीबों को मोबाइल देने जा रही है। ताकि अपने हिसाब से धुन सेट कर सके। आपस में लड़नेवाली बीजेपी को जब कोई नया धुन नहीं मिलता तो वो हिन्दुत्व राग छेड़ देती है। फाइट स्टार होटल में बैठकर वामदल किसान मजदूरों को नचा रहा है। तमाम राज्यों की छोटी छोटी पार्टियां स्थानीय मिजाज को देखकर धुन तैयारी करती है, ताकि थकने के बाद भी बिना चांय चुपर किये वो आसानी से नाच सके।
 राजनेताओं के राग पर नाच-नाच कर थक चुके लोगों को एक नया राग मिला। अन्ना राग। साल भर तक लोग अन्ना हजारे के धुन पर नाचते रहे। पूरा देश अन्ना-अन्ना करने लगा। लेकिन राजनीतिक दलों को गरियाने वाले अन्ना हजारे और टीम अन्ना खुद राजनीतिक हो गये। लोगों को अन्ना से मोह भंग हुआ तो बाबा रामदेव ढोल लेकर कूद पड़े। अब लोग उनके पीछे है। लेकिन कब तक ये पता नहीं। क्योंकि पुलिसिया डंडे के डर से वो पिछली बार अपना अपना ढोल, धुन और बंदरों को छोड़कर भाग चुके हैं।  
 दरअसल जब तक ये बंदर इंसान नहीं बनेगा। दूसरों के इशारों पर नाचना नहीं छोड़ेगा। तब तक यूं ही ये मदारी इन्हें नचाते रहेंगे। लेकिन सवाल है कि, ये बंदर कब इंसान बनेगा। जो दूसरों के इशारों पर नाचने के बजाय खुद ऐसा धुन तैयार करेगा, जब उसके इशारों पर ये तमाम मदारी नाचेंगे और वे खुद तालियां भी बजाएंगे। हालांकि ऐसा रास्ता कोई दिख नहीं रहा, लेकिन उम्मीद तो मैं कतई नहीं छोड़ रहा हूं। बस इंतजार कर रहा हूं।

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