शुक्रवार, 15 मई 2015

बीजेपी का ‘जन’ कल्याण पर्व

सरकार के एक साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री मोदी और उनके मंत्री लोगों के बीच जाएंगे। एक साल काम का बखान करेंगे। लोगों को एक बार फिर वादों को आंकड़ों के खेल में उलझाएंगे। इसके लिए बीजेपी ने राष्ट्रीय स्तर से लेकर जिला स्तर तक के नेता को तैयार किया है। 250 रैलियां और 500 से ज्यादा प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए बीजेपी जन कल्याण पर्व मनाएगी।

जन कल्याण पर्व के आसरे बीजेपी आमलोगों को समझाने की कोशिश करेगी कि वो उनके साथ ही है। दरअसल बीजेपी को यह अहसास होने लगा है कि दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद वो लोगों से दूर होने लगी है। प्रधानमंत्री मोदी के चुनावी वादों को सुनकर जिस तरह से लोग बीजेपी की ओर आकर्षित हुए थे, उसी तरह अब जनता का मोहभंग भी होने लगा है।

महंगाई और भ्रष्टाचार से तंग आ चुके लोगों को बीजेपी और मोदी में एक उम्मीद दिखी थी। मोदी के वादों, भाषणों और प्रचार से ऐसा लगने लगा था कि कुछ बदलने वाला है। अच्छे दिन आने वाले हैं। लेकिन एक बरस के बाद भी कुछ खास नहीं बदला। आंकड़ों से इतर अगर हकीकत देखें तो महंगाई काफी बढ़ी है। जो अरहड़ की दाल 80 रुपए किलो मिलती थी वो 110 रुपए किलो मिल रही है। मसूढ़ की दाल में 20 रुपए प्रति किलो तक का इजाफा हो गया है। आटा और चावल महंगे हो गए हैं। यहां तक कि सब्जियों के दाम में भी कोई कमीन नहीं आई है। बल्कि दाम बढ़े हैं।

वहीं दूसरी तरफ किसानों की हालत में कोई सुधार नहीं हुई है। किसानों के फसल के वाजिब दाम अभी भी नहीं मिल रहे हैं। फसल बर्बाद हो रही है। अनाज मंडियों में सड़ रहे हैं। औने-पौने दाम पर किसान अनाज बेचने को मजबूर है। मराठावाड़ा और मध्यप्रदेश के कई इलाकों में तक लोगों को पीने का पानी तक नहीं मिल रहा है। किसानों की आत्महत्या करने का दौर जारी है।

प्रधानमंत्री मोदी ने नौजवानों को नई नौकरी देने का वादा किया था। स्किल डेवलपेंट की बात कही थी। लोगों को तो उम्मीद थी कि पहले से बंद पड़े मील, कारखानों को खोला जाएगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। यहां तक रियल स्टेट जैसे सेक्टर में नौकरियां कम हुई है। कई छोटे-बड़े प्रोजेक्ट बंद होने वाले हैं। सीधा असर लोगों पर पड़ा हैं।

कालाधन वापसी और लोगों के एकाउंट में 15 लाख रुपए जमा करने के वादों को लोग मजाक के तौर पर समझने लगी है। पेट्रोल-डीजल की कीमतों को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। लोगों को ये समझ में नहीं आ रहा है कि पिछले एक साल में अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें आधी हो गई है। लेकिन हिंदुस्तान में पेट्रोल-डीजल के दाम सिर्फ 10 रुपए कम क्यों हुए हैं।

कांग्रेस के पतन का एक मुख्य वजह भ्रष्टाचार था। लेकिन भ्रष्टाचार पर मोदी भी मौन हैं। एक साल हो गए लेकिन अभी तक लोकपाल की नियुक्ति नहीं हुई। सीवीसी और मुख्य सूचना आयुक्त के पद खाली हैं।

सरकार की सालगिरह से ठीक पहले प्रधानमंत्री चीन में हैं। लेकिन वहां का मीडिया हिंदुस्तान के नक्शे से कश्मीर और अरूणाचल प्रदेश को गायब कर दिया। मोदी मौन हैं। बीजेपी चुप है। सरकार खामोश हैं। सवाल उठ रहे हैं क्योंकि चुनाव से पहले मोदी ने कहा था कि पड़ोसी मुल्क से आंख में आंख मिलकर बात करेंगे। लेकिन अभी नजरें झुकी हुई है। इधर पाकिस्तान की तरफ से फरवरी 2015 से अब तक 685 बार सीजफायर का उल्लंघन हो चुका है। कई जवान शहीद हो गए हैं।

मोदी सरकार ने स्वच्छता अभियान शुरू किया था लेकिन इसमें कोई उत्साह नजर नहीं आ रहा है। आम योजना की तरह यह भी एक योजना बन कर रह गई। सांसदों ने गांव गोद लिया था। लेकिन एक आध सांसदों को छोड़ दें तो कोई घूमकर उस आदर्श गांव को देखने तक नहीं गया। अभी बिहार की एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें 29 सांसदों का जिक्र था, जिन्होंने अपनी सांसद निधि का एक भी पैसा खर्च नहीं किया। इसमें ज्यादातर बीजेपी के सांसद थे।

पिछले एक साल के दरम्यान दिल्ली से मुंबई तक कई चर्च पर हमले हुए। साक्षी महाराज और योगी आदित्यनाथ जैसे सांसदों ने लव जिहाद, घर वापसी और ज्यादा बच्चा पैदा करने वाले बयान दिए। इसस लोगों में सकारात्मक संदेश नहीं गया।  

इस सब के बीच राहुल गांधी नए अवतार में नजर आ रहे हैं। संसद में लगातार सरकार पर हमले कर रहे हैं। लोगों के बीच जा रहे हैं। बीजेपी इसे नजर अंदाज करने की भूल नहीं कर सकती। विधानसभा चुनाव आने वाले हैं। क्षत्रपों से पार पाने के लिए बीजेपी को ठोस पहल करनी पड़ेगी।

जाहिर है ये अहसास बीजेपी हाईकमान को होने लगा है। लिहाजा पार्टी अब वो सीधे आमलोगों से जुड़ने की तैयारी कर रही है। लेकिन आम लोगों से बात करने के बजाय अगर सरकार आम लोगों के हिम में काम करें तो पार्टी के लिए फायदेमंद साबित होगा। क्योंकि जनता सब जानती है। दिल्ली इसका उदाहरण हैं।

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