मंगलवार, 19 मई 2015

दिल्ली में रांड़ी-बेटखौकी की लड़ाई

दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल नजीब जंग के बीच लड़ाई निचले स्तर तक पहुंच गई है। दोनों तरफ से ऐसी हरकतें हो रही है जैसे बच्चे आपस में लड़ रहे हैं। जैसे संस्कारहीन अशिक्षित गंवार लड़ते हैं। जैसे टुच्चे झगड़ते हैं। हमारे यहां इसे रांड़ी-बेटखौकी की लड़ाई कहते हैं।   

उपराज्यपाल का संवैधानिक पद बड़ा होता है। समझकर कोई कदम उठाना चाहिए। अगर केजरीवाल अपने नजदीकी अफसर की नियुक्ति करना चाहते हैं। तो उन्हें अनदेखी करनी चाहिए थी। हर मुख्यमंत्री-प्रधानमंत्री अपने नजदीकियों को नियुक्त करता है। नजीब जंग को बड़प्पन दिखाना चाहिए था। अगर केजरीवाल गलती भी कर रहे हैं। जिदपन पर अड़े हुए हैं। तो उन्हें बर्दाश्त करना चाहिए था। या फिर संवैधानिक रास्ता अपनाते। लेकिन वो चूक गए।

केजरीवाल जनता के चुने हुए नुमाइंदे हैं। उन्हें जनता के बीच रहना है। उन्हें जनता को हिसाब देना है। छोटी-छोटी बातों को बतंगड़ बनाकर खुद अपनी छबि खराब कर रहे हैं। अगर नजीब जंग गलत हैं तो केजरीवाल को संवैधानिक लड़ाई लड़नी चाहिए।  

केजरीवाल को चाहिए था कि वो बाकी केंद्र शासित प्रदेशों से संपर्क करते। संविधान विशेषज्ञों से राय लेते। सुप्रीम कोर्ट जाते। अगर नजीब जंग मुख्यमंत्री के कार्यक्षेत्र में दखल दे रहे हैं तो जरूर उनकी छुट्टी हो जाती।

केजरीवाल को चाहिए था कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए विधानसभा में बिल पास कराते। सड़क पर प्रदर्शन करते। केंद्र सरकार पर दबाव बनाते। अगर केंद्र केजरीवाल सरकार को अस्थिर करने की साजिश कर रहा है तो जनता उसे सबक सिखाती।

केजरीवाल तो सिर्फ विकास के लिए सियासत में आए थे। उन्हें किसी भी अफसर के साथ काम करने में दिक्कत नहीं होनी चाहिए थी। अगर शंकुतला गैमलिन या अनिंदो मजूमदार या फिर कोई अधिकारी भ्रष्टाचारी हैं, गलती करते हैं तो उसे सबूत के साथ कोर्ट में घसीटना चाहिए था। सबकी छुट्टी हो जाती है। केजरीवाल का कद और बढ़ता।

लेकिन लड़ाई इगो की हो रही है। जहां सबकुछ ताक पर ऱख दिया गया है। तेरा अफसर, मेरा अफसर। मुख्यमंत्री का फैसला उपराज्यपाल को मंजूर नहीं है। और उपराज्यपाल का आदेश मुख्यमंत्री को बर्दाश्त नहीं है। सलीके से अगर किसी से पूछ दें कि दिल्ली में कौन अफसर किस पद पर है, तो लोग नहीं बता पाएंगे। शायद खुद अफसर भी नहीं समझ पा रहे होंगे।

इससे पहले भी दिल्ली और केंद्र में अलग-अलग पार्टियों की सरकार रही है। दूसरे राज्यों में भी है। राज्यपाल या उपराज्यपाल से मुख्यमंत्रियों के मतभेद भी रहे हैं। लेकिन केजरीवाल और नजीब जंग के बीच मनभेद गहरा जख्म बन चुका है।

केजरीवाल में अनुभवहीनता की कमी साफ दिख रही है। लेकिन इससे भी ज्यादा चिंता की बात ये है कि एक गलत परंपरा की शुरुआत हो रही है। जो लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है। अगर समय रहते इसपर चिंतन नहीं किया गया। कोई रास्ता नहीं निकाला गया तो शूल बन जाएगा। 

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