शुक्रवार, 12 जून 2015

सियासी पार्टियों की नैतिकता कहां है ?

देश की सबसे बड़ी पार्टी की नैतिकता को साहेब ने जूते से रौंदकर चूड़ीदार पैजामे के साथ दीवार पर टांग दिया। इंसाफ की आस में कई दिनों तक लटकी रही। तड़पती-कराहती रही। साहेब अहमदाबाद से दिल्ली आ गए। नैतिकता वहां से निकली तो बहू की चौखट पर लटपटा कर गिर पड़ी। फिर कहां-कहां गिरी खुद पता नहीं। साक्षी-योगी-साध्वी तो फुटबॉल समझकर खेलते रहते हैं। फिलहाल दिल्ली के 15 अशोक रोड में एक कमरे में पड़ी है। शायद कोमा में है।

देश की नई नवेली और सबसे ईमानदार पार्टी से नैतिकता को काफी उम्मीदें थी। लेकिन सरकार बनते ही भ्रम टूट गया। पहले पेड़ पर गमछा से लटका दिया। फिर फर्जीवाड़ा के फांस में फंसा दिया। कई दिनों तक धरने पर बैठी रही। किसी तरह मंत्री से छूटी तो विधायक ने कुत्ते से कटवा दिया। इस वक्त मुख्यमंत्री निवास के गेट पर लहुलूहान पड़ी हुई है।

देश की सबसे पुरानी पार्टी नैतिकता को काफी पहले ही तालाक दे चुकी है। तालाक देने से पहले जमकर कुटाई की थी। शरीर का एक भी अंग सही सलामत नहीं छोड़ा था। मैडम से लेकर अदना विधायक और छुटभैया नेता तक। सबने हाथ साफ किया था। हालांकि कुर्सी जब से छिटकी है उसके बाद से फिर याद आई है। कभी मैडम तो कभी भैया, कभी कभार बहन जी भी हालचाल पूछ लेते हैं। अभी 10 जनपथ में बुला ली गई है। एक छोटे से कमरे में रह रही है। बस सांसे चल रही है।

लोहिया की पार्टी में तो समाजवादी शिरोमणि को नैतिकता कभी पसंद ही नहीं आई। नैतिकता को नेताजी हमेशा हीन भावना से देखते रहे। इसलिए तो उन्होंने भरी सभा में नैतिकता का रेप करवाया। मंत्रियों ने जब चाहा पीटा। गोली मारी। छद्म समाजवाद के एक पुरोधा जो अभी मंत्री भी हैं, उन्होंने नैतिकता को आग में झोंक दिया। जूनियर नेताजी ने भी कह दिया है कि हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। मुख्यमंत्री होकर भी भैयाजी मुंह ताक रहे हैं क्योंकि उनके पापा ने पहले ही बता दिया था हमारे घर में कोई भी आ जाए लेकिन नैतिकता नहीं आनी चाहिए।

नैतिकता को लगा कि दीदी रहम दिल है। उनके घर में मान होगा। औरत भी हैं। दर्द समझेगी। लेकिन उसे क्या पता कि वो गलतफहमी में जी रही है। एक ही घोटाले में नैतिकता को जेल में बंद करवा दिया। नैतिकता इस वक्त जेल में चक्की पीस रही है।

सुशासन बाबू की नैतिकता फिलहाल चारा प्रमुख के घर में गिरवी है। पिछले साल जब केंद्र में उनके दुश्मन की सरकार बनी तो सुशासन बाबू ने अपने सिर से ताज उतारकर नैतिकता को बिठा लिया। नैतिकता अचंभित थी हृदय परिवर्तन देखकर। अब तक जूते के नीचे दबी हुई पड़ी थी। अचानक माथे पर आ गई। लेकिन सुशासन बाबू ज्यादा दिनों तक नैतिकता का भार नहीं बर्दाश्त कर सके। अब तो स्थिति ये है कि अपने घर से भी दूर कर दिया है नैतिकता को।

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