सोमवार, 14 सितंबर 2015

अपनों को समझना जरूरी है!

बिना माँ बाप के बच्चे मतलब शैशवा अवस्था में जिसकी माँ मर गई हो, वाल्या अवस्था में बाप साथ छोड़ गया हो वो वक्त की ठोकर खा-खा कर इतना क्रूर हो जाता है कि समय आने पर उसके स्वयं के बच्चे और पत्नी भी उसके साथ रहने को अपनी मज़बूरी समझने लगते हैं। कोई भी उसके अंदर की भावना को प्यार और इच्छा को समझने की कोशिश नहीं करता क्योकि सभी को केवल अपनी जरूरतों से मतलब होता है जिसकी पूर्ति का वो व्यक्ति साधन मात्र है। चाहे वो पत्नी हो या फिर बच्चे। वो व्यक्ति अगर अच्छे बुरे की बात को लेकर अगर कुछ कहता भी है तो सभी को ऐसा लगता है कि वो जबरदस्ती उसपर थोपी जा रही है। इसका कारण है उस व्यक्ति की क्रूरता जिसकी वजह से उसकी आवाज इतनी तेज होती है कि सभी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त किये बिना सहम कर चुप  लगा जाते हैं। नफरत करने लगती है और बच्चे मज़बूरी बस दूरी बनाते हुये सहमी जिंदगी जीते रहते हैं, दुनिया उसे अकड़ू और बद्तमीज कहती है परंतु कोई भी उसे समझने की कोशिश नहीं करता। परिणाम होता है व्यक्ति के जीवन में अकेलापन उसे खोखला बना देती है और वो संबेदनाहीन हो जाता है। यही सिलसिला जब लंबी हो जाती है तो व्यक्ति अपने कर्तव्य के निर्वहन से बिमुख हो कर अपनी जीवन लीला ख़त्म कर लेता है।
 
आज काफी उधेर बुन के बाद मेरे समझ में ये आया कि मैं कभी भी ना एक अच्छा पति बन सकता हूँ और ना ही एक अच्छा पिता और ना ही एक अच्छा नागरिक। ये मैं इसलिये लिख रहा हूँ, ताकि मेरे जैसे व्यक्ति जो मेरी तरह की जिंदगी जी रहे हैं वो अपनी क्रूरता पर नियंत्रण कर अपने स्वभाव को बदल कर अपनों के करीब रहकर उनका प्यार पा सकें। मेरा तो भगवन ही मालिक है कमसे कम आप तो अपना मालिक अपने बच्चों और पत्नी को बनने दें। क्योंकि मैं उस जगह पर पहूंच गया हूँ जहाँ से बदलाव मुश्किल है फिर भी कोशिश जारी रहेगी।
 
भगवन से प्रार्थना है कि अगर बच्चों को जन्म दिया है तो उससे उसके माँ बाप को बड़े होने तक अलग मत करना ताकि उसे माँ-बाप के प्यार का एहसास अपने माँ-बाप बनने तक पता रहे और वो भी अपने बच्चे और पत्नी को भरपूर प्यार दे सके। जिसका एहसास उन्हें भी हो। मैं भी अपनी पत्नी को और बच्चों को बहुत प्यार करता हूँ उसके बगैर जीने की सोच भी नहीं सकता लेकिन इसका एहसास मैं उन्हें नहीं दिला पता जिसके वजह से कभी कभी जीवन निरर्थक लगता है। फिर भी मैं लड़ता रहूँगा और अपनों में विश्वास जगाने की कोशिश करता रहूँगा।
 
इसे पढ़ने वालों से निवेदन है कि जिस तरह पिता की जिम्मेदारी परिवार को मजबूत, सुशिक्षित, और सम्माननीय बनाना होता है उससे भी ज्यादा जरुरी अपने प्रति उनके प्यार का एहसास जगाना होता है ताकि वो अपनी बात खुल कर आपके सामने रख सकें और आपसे विचार विमर्श कर सके नाकि दहशत में रह कर कुढ़ते और घुटते रहें और धीरे-धीरे सभी आप से दूर चले जाएँ और आपसे नफरत करने लगें।
 
धन्यवाद.........सोमेन्द्र।

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