शनिवार, 22 जुलाई 2017

मानसरोवर की अनकही बातें

कैलाश मानसरोवर....नाम सुनते ही आपके जेहन में जो तस्वीरें घूमती हैं...वो बेहद आनंद देती है...आस्था और विश्वास से ओतप्रोत हो जाता है मन,...आप किसी भी धर्म के हों...हिंदू हों, बौद्ध या फिर जैन या सिख....आप आस्था के अट्टालिका पर पहुंच जाते हैं सोचते-सोचते...हर साल एक बड़ा जत्था जाता है कैलाश मानसरोवर के लिए...हिंदुस्तान के कोने-कोने से लोग मानसरोवर पहुंचते हैं...मुश्किलों की बेड़ियों को तोड़ते हुए । 
जिस कैलाश मानसरोवर को आप हिंदुओं की आस्था का महाकेंद्र मानते हैं, वो असल में दूसरे धर्मों के लोगों के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है। हिंदुओं के लिए ये महादेव के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है...कहते हैं कि यहां स्वयंव भगवान शिव निवास करते हैं। बौद्ध धर्म को मानने वाले कहते हैं कि यहीं पर रानी माया को भगवान बुद्ध की पहचान हुई थी जैन धर्म की माने तो आदिनाथ ऋषभदेव का यह निर्वाण स्थल 'अष्टपद' है। कुछ लोगों का मानना यह भी है कि गुरु नानक ने भी यहां कुछ दिन रुककर ध्यान किया था।   
कैलाश मानसरोवर को कुबेर की नगरी भी कहा जाता है...यह चार नदियों से घिरा हुआ है...कैलाश के चारों दिशाओं में विभिन्न जानवरों के मुख है जिसमें से नदियों का उद्गम होता है  ... पश्चिम में सतलुज नदी है...पूरब में ब्रह्मपुत्र नदी है...दक्षिण में करनाली तो उत्तर में सिंधु नदी बहती है। 
कैलाश मानसरोवर तिब्बत में स्थित है, जहां चीन का कब्जा है। कैलाश मानसरोवर जाने का एक रास्ता उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे से होकर जाता है। दूसरा रास्ता सिक्किम के नाथुला दर्रे से होकर गुजरता है।उत्तराखंड के रास्ते राजने में 24 दिन और सिक्किम होकर जाने में 21 दिन लगते हैं। चीन का बॉर्डर पार करने के बाद ही कैलाश मानसरोवर पहुंचा जा सकता है।
बर्फीले रास्तों से होकर कैलाश मानसरोवर का सफर तय करना पड़ता है...मानसरोवर एक झील है...कहते हैं कि इसे ब्रह्मा ने बनाया था।  इस झील पर जाने का सबसे बेहत समय सुबह 3 बजे से 5 के बीच होता है, जिसे ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं। झील लगभग 320 किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है। दर्रा समाप्त होने पर तीर्थपुरी नामक स्थान है जहाँ गर्म पानी के झरने हैं। 
ड्रोल्मा से नीचे बर्फ़ से हमेशा ढकी रहने वाली ल्हादू घाटी में स्थित एक किलोमीटर परिधि वाला पन्ने के रंग की झील है, जिसे गौरीकुंड कहते हैं...यह कुंड हमेशा बर्फ़ से ढंका रहता है, लेकिन तीर्थयात्री बर्फ़ हटाकर इस कुंड के पवित्र जल में स्नान करते हैं। 
कैलाश पर्वत कुल 48 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। घोडे और याक पर चढ़कर ब्रह्मपुत्र नदी को पार करके कठिन रास्ते से होते हुये यात्री डेरापुफ पहुंचते हैं। जहां ठीक सामने कैलाश के दर्शन होते हैं। कैलाश पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूरब को क्रिस्टल, पश्चिम को रूबी और उत्तर को स्वर्ण रूप में माना जाता है।  
कैलाश मनसरोवर यात्रा विदेश मंत्रालय के जरिए होती है। हर साल ये यात्रा जून से सितंबर महीने के बीच में होती है।  70 साल का कोई शख्स को तंदरुस्त हो इस यात्रा में शामिल हो सकता है...केंद्र सरकार की तरफ से कोई वत्तीय सहायत नहीं मिलती...हालांकि अलग-अलग राज्य सरकारों ने अपने सूबे के यात्रियों के लिए सब्सिडी का ऐलान जरूर किया है। 

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